अंतिम दिनों का मसीह - सर्वशक्तिमान परमेश्वर

अपने पुनरूत्थान के बाद यीशु रोटी खाता है और पवित्रशास्त्रों को समझाता है

  लूका 24:30-32 जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा। तब उनकी आँखें खुल गईं; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। उन्होंने आपस में कहा, "जब वह मार्ग में हम से बातें करता था और पवित्रशा स्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?"

  लूका 24:36-43 वे ये बातें कह ही रहे थे कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ, और उनसे कहा, "तुम्हें शान्ति मिले।" परन्तु वे घबरा गए और डर गए, और समझे कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। उसने उनसे कहा, "क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो कि मैं वही हूँ। मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।" यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। जब आनन्द के मारे उनको प्रतीति न हुई, और वे आश्‍चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, "क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?" उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का टुकड़ा दिया। उसने लेकर उनके सामने खाया।

  इसके बाद, अब हम ऊपर दिए गए पवित्रशास्त्र के अंशों पर एक नज़र डालेंगे। पहला अंश पुनरूत्थान के बाद प्रभु यीशु के रोटी खाने और पवित्रशास्त्र को समझाने का वर्णन है, और दूसरा अंश प्रभु यीशु के भुनी हुई मछली खाने का वर्णन है। ये दोनों अंश परमेश्वर के स्वभाव को जानने के लिए किस प्रकार की सहायता प्रदान करते हैं? क्या तुम लोग इसकी कल्पना कर सकते हो कि प्रभु यीशु के रोटी और फिर भुनी हुई मछली खाने के इन विवरणों में तुम लोग किस प्रकार की तस्वीरों को प्राप्त करते हो? क्या तुम लोग कल्पना कर सकते हो कि, यदि प्रभु यीशु तुम लोगों के सामने रोटी खाता हुआ खड़ा होता, तो तुम लोगों को कैसा महसूस होता? अथवा यदि वह तुम लोगों के साथ एक ही मेज पर भोजन कर रहा होता, लोगों के साथ मछली और रोटी खा रहा होता, तो उस समय तुम्हें किस प्रकार की भावना आती? यदि तुम महसूस करते कि तुम प्रभु के बेहद करीब होते, कि वह तुम्हारे साथ बेहद अंतरंग होता, तब यह भावना सही है। यह बिल्कुल वही परिणाम है जो पुनरूत्थान के बाद प्रभु यीशु भीड़ के सामने रोटी और मछली खाने के द्वारा दिखाना चाहता था। यदि प्रभु यीशु पुनरूत्थान के बाद सिर्फ लोगों से बात करता, यदि उन्होंने उसकी देह और हड्डियों को महसूस नहीं किया होता, बल्कि यह महसूस किया होता कि वह एक अगम्य पवित्रात्मा है, तो वे कैसा महसूस करते? क्या वे निराश नहीं हो जाते? जब लोग निराश हो जाते, तो क्या वे परित्यक्त महसूस नहीं करते? क्या वे प्रभु यीशु मसीह से एक दूरी का एहसास नहीं करते? परमेश्वर के साथ लोगों के रिश्ते पर यह दूरी किस प्रकार का नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती? लोग निश्चित रूप से भयभीत हो जाते, कि वे उसके करीब आने की हिम्मत नहीं करते, और उनका उसे एक सम्मानित दूरी पर रखने का रवैया होता। उसके बाद से, वे प्रभु यीशु मसीह के साथ अपने अंतरंग रिश्ते को तोड़ देते, और मनुष्यजाति और ऊपर स्वर्ग के परमेश्वर के बीच रिश्ते की ओर वापस लौट जाते, जैसा कि अनुग्रह के युग के पहले था। जिस आध्यात्मिक देह को लोग स्पर्श और महसूस नहीं कर सकते थे वह परमेश्वर के साथ उनकी अंतरंगता का उन्मूलन कर देती, और यह उस अंतरंगता के अस्तित्व को भी—जो प्रभु यीशु मसीह के देह में रहने के समय स्थापित हुई थी, जिसमें मनुष्यजाति और उसके बीच कोई दूरी नहीं थी—खत्म कर देती। आध्यात्मिक देह के प्रति लोगों की भावनाएँ केवल भय, बचते रहना, और निःशब्द टकटकी है। वे उसके करीब आने या उससे बात करने की हिम्मत नहीं करते हैं, उसका अनुसरण करने, उस पर भरोसा करने, या उससे आशा करने की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर इस प्रकार की भावना को देखने का अनिच्छुक था जो मनुष्यों के मन में उसके लिए थी। वह यह नहीं देखना चाहता था कि लोग उसे बच कर निकलें या अपने आप को उससे दूर हटा दें; वह केवल इतना चाहता था कि लोग उसे समझें, उसके करीब आएँ, और उसका परिवार बन जाएँ। यदि तुम्हारे स्वयं के परिवार ने, तुम्हारे बच्चों ने तुम्हें देखा परन्तु तुम्हें पहचाना नहीं, और तुम्हारे करीब आने की हिम्मत नहीं की बल्कि हमेशा तुमसे बचते रहे, और जो कुछ भी तुमने उनके लिए किया उसके लिए तुम उनकी समझ को प्राप्त नहीं कर सके, तो इससे तुम्हें कैसा महसूस होगा? क्या यह दुःखदायी नहीं होगा? क्या तुम्हारा हृदय नहीं टूट जाएगा? बिल्कुल ऐसा ही परमेश्वर महसूस करता है जब लोग उससे बचते हैं। इसलिए, अपने पुनरूत्थान के बाद, प्रभु यीशु तब भी लोगों के सामने माँस और लहू के अपने रूप में प्रकट हुआ, और उसने उनके साथ खाया और पीया। परमेश्वर लोगों को एक परिवार के रूप में देखता है और वह चाहता है कि मनुष्यजाति भी उसे इसी तरह से देखे; केवल इसी तरह से परमेश्वर सचमुच में लोगों को प्राप्त कर सकता है, और लोग सचमुच में उससे प्रेम और उसकी आराधना कर सकते हैं। अब क्या तुम लोग पवित्रशास्त्र के इन दो अंशों का उद्धरण देने के मेरे इरादे को समझ सकते हो जहाँ प्रभु यीशु रोटी खाता है, अपने पुनरूत्थान के बाद पवित्रशास्त्र को समझाता है, और चेले उसे खाने के लिए भुनी हुई मछली देते हैं?

  ऐसा कहा जा सकता है कि कार्यों की श्रृंखलाएँ जो प्रभु यीशु ने पुनरूत्थान के बाद कही और की वे विचारपूर्ण थीं, और वे दयालु इरादों से की गई थीं। वे दयालुता और स्नेह से भरी हुई थीं जो परमेश्वर मानवजाति के प्रति रखता है, और प्रशंसा और कुशल देखरेख से भरी हुई थीं जो उस अंतरंग सम्बन्ध के लिए थीं जिसे उसने देह में रहने के दौरान मनुष्यजाति के साथ स्थापित किया था। उससे भी अधिक, वे अतीत की ललक और अपने अनुयायियों के साथ खाने-पीने के उस जीवन की आशा से भरी हुई थीं जो उसके देह में रहने के समय के दौरान थी। इसलिए, परमेश्वर नहीं चाहता था कि लोग परमेश्वर और मनुष्य के बीच दूरी महसूस करें, और न ही वह यह चाहता था कि मनुष्यजाति स्वयं को परमेश्वर से दूर रखे। इससे भी बढ़कर, वह नहीं चाहता था कि मनुष्यजाति यह महसूस करे कि प्रभु यीशु पुनरूत्थान के बाद अब और वह प्रभु नहीं है जो लोगों से बहुत अंतरंग था, कि वह मनुष्यजाति के साथ अब और नहीं है क्योंकि वह आध्यात्मिक संसार में लौट गया है, और उस पिता के पास लौट गया है जिसे लोग कभी देख नहीं सकते थे और जिस तक कभी नहीं पहुँच सकते हैं। वह नहीं चाहता था कि लोग यह महसूस करें कि उसके और मनुष्यजाति के बीच पद का कोई अंतर है। जब परमेश्वर उन लोगों को देखता है जो उसका अनुसरण करना चाहते हैं परन्तु उसे एक सम्मानित दूरी पर रखते हैं, तो उसके हृदय में पीड़ा होती है क्योंकि इसका मतलब है कि उनके हृदय उससे बहुत दूर है, इसका मतलब है कि उसके लिए उनके हृदयों को पाना बहुत कठिन होगा। इसलिए यदि वह लोगों के सामने एक आध्यात्मिक देह में प्रकट हो जाता जिसे वे छू और देख नहीं सकते, तो इसने एक बार फिर मनुष्य को परमेश्वर से दूर कर दिया होता, और इसने मनुष्यजाति की ग़लत ढंग से यह देखने की ओर अगुआई की होती कि पुनरूत्थान के बाद मसीह अभिमानी, मनुष्यों से भिन्न प्रकार का, और ऐसा बन गया है, जो मनुष्य के साथ मेज पर अब और नहीं बैठ सकता था और उनके साथ नहीं खा सकता है क्योंकि मनुष्य पापी और गन्दे हैं, और कभी भी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते हैं। मनुष्यजाति की इन ग़लतफहमियों को दूर करने के लिए, प्रभु यीशु ने कई चीज़ें की जिन्हें वह देह में प्रायः करता था, जैसा कि बाइबल में दर्ज है, "उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा।" उसने उन्हें पवित्रशास्त्र भी समझाया, जैसा कि वह किया करता था। यह सब कुछ जो प्रभु यीशु ने किया उसने प्रत्येक व्यक्ति को जिसने उसे देखा था यह महसूस कराया कि प्रभु नहीं बदला है, यह कि वह अभी भी वही प्रभु यीशु है। भले ही उसे सूली पर चढ़ा दिया गया था और उसने मृत्यु का अनुभव किया था, फिर भी वह पुनर्जीवित हो चुका है, और उसने मनुष्यजाति को नही छोड़ा था। वह मनुष्यों के बीच रहने के लिए लौट आया था, और उसमें कुछ भी नहीं बदला था। लोगों के सामने खड़ा मनुष्य का पुत्र वही प्रभु यीशु था। लोगों के साथ उसका व्यवहार और उसकी बातचीत बहुत परिचित लगती थी। वह तब भी सहृदयता और सोच-विचार, अनुग्रह और सहिष्णुता से उतना ही भरपूर था—वह तब भी वही प्रभु यीशु था जो लोगों से वैसा ही प्रेम करता था जैसा वह अपने आप से करता था, जो मनुष्यजाति को सात बार के सत्तर गुने तक क्षमा कर सकता था। हमेशा की तरह, उसने लोगों के साथ खाया, उनके साथ पवित्रशास्त्र पर चर्चा की, और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण, वह पहले के समान ही, माँस और लहू से बना था और उसे छुआ और देखा जा सकता था। इस तरह मनुष्य के पुत्र ने लोगों को उस अंतरंगता को महसूस करने, और सहज महसूस करने, और किसी खोयी हुई चीज़ को पुनः प्राप्त करने का आनंद लेने दिया, और उन्होंने भी हिम्मत और दृढ़ विश्वास के साथ इस मनुष्य के पुत्र के ऊपर भरोसा और उसका आदर करना आरम्भ करने में पर्याप्त रूप से सहज महसूस किया जो मनुष्यजाति को उनके पापों के लिए क्षमा कर सकता था। वे निःसंकोच रूप से प्रभु यीशु के नाम से उसका अनुग्रह, उसका आशीष प्राप्त करने के लिए, और उससे शांति और आनन्द प्राप्त करने के लिए, और उससे देखरेख और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना भी करने लगे, तथा प्रभु यीशु के नाम से चंगाई करने लगे और दुष्टात्माओं को निकालने लगे।

  जिस दौरान प्रभु यीशु देह में होकर काम करता था, उसके अधिकतर अनुयायी उसकी पहचान और उसके द्वारा कही गई चीज़ों को पूरी तरह से सत्यापित नहीं कर सकते थे। जब वह क्रूस पर चढ़ गया, तो उनके चेलों का रवैया अपेक्षा का था; जब उसे क्रूस पर कीलों से ठोंक दिया गया था उस समय से लेकर उसे क़ब्र में डाले जाने तक, उसके प्रति लोगों का निराश रवैया था। इस समय के दौरान, लोगों ने पहले से ही अपने हृदय में उन चीज़ों के बारे में सन्देह करने से नकारने की ओर जाना आरम्भ कर दिया था जिन्हें प्रभु यीशु ने अपने देह में रहने के दिनों के दौरान कहा था। और जब वह क़ब्र से बाहर आया, और एक-एक करके लोगों के सामने प्रकट हुआ, तो वे अधिकांश लोग जिन्होंने उसे अपनी आँखों से देखा था या उसके पुनरूत्थान के समाचार को सुना था धीरे-धीरे नकारने से संशय की ओर आने लगे थे। अपने पुनरूत्थान के बाद जिस समय प्रभु यीशु ने अपने पंजर में थोमा से उसका हाथ डलवाया, जिस समय प्रभु यीशु ने भीड़ के सामने रोटी तोड़ी और खायी, और उसके बाद उनके सामने भुनी हुई मछली खायी, केवल तभी उन्होंने सचमुच में उस तथ्य को स्वीकार किया कि प्रभु यीशु ही देह में मसीह है। तुम लोग ऐसा कह सकते हो कि यह ऐसा था मानो कि तब माँस और रक्त वाला यह आध्यात्मिक शरीर उन लोगों के सामने खड़ा हुआ उन्हें किसी स्वप्न से जगा रहा थाः मनुष्य का पुत्र जो उनके सामने खड़ा था वही एक था जो अतिप्रचीन समय से अस्तित्व में था। उसका एक आकार, और माँस और हड्डियाँ थीं, और वह पहले से ही मनुष्यजाति के साथ लम्बे समय तक रह और खा चुका था...। इस समय, लोगों ने महसूस किया कि उसका अस्तित्व बहुत यथार्थ, और बहुत अद्भुत था; वे भी बहुत आनन्दित और प्रसन्न थे, और साथ ही मनोभाव से भी भरे थे। और उसके पुनः-प्रकटन ने सचमुच में लोगों को उसकी विनम्रता को देखने, और उसकी नज़दीकी, और उसकी चाहत, और मनुष्यजाति के प्रति उसकी अनुरक्ति को महसूस करने दिया। इस संक्षिप्त पुनर्मिलन ने उन लोगों को जिन्होंने प्रभु यीशु को देखा था यह महसूस कराया मानो कि एक पूरा जीवन काल गुज़र चुका हो। उनके खोए हुए, भ्रमित, भयभीत, चिन्तित, लालायित और संवेदनशून्य हृदय को आराम मिला। वे अब और सन्देहपूर्ण या निराश नहीं थे क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि अब उनके पास आशा थी और कुछ ऐसा था जिस पर वे भरोसा कर सकते थे। उनके सामने खड़ा मनुष्य का पुत्र पूरी अनन्तता तक उनके पीछे रहेगा, वह उनका दृढ़ दुर्ग, और हमेशा के लिए उनका आश्रय होगा।

  यद्यपि प्रभु यीशु पुनरूत्थित हो चुका था, फिर भी उसके हृदय और उसके कार्य ने मनुष्यजाति को नहीं छोड़ा था। उसने अपने प्रकटन से लोगों को बताया कि वह भले ही किसी भी रूप में अस्तित्व में क्यों न हो, वह हर समय और हर जगह लोगों का साथ देगा, उनके साथ चलेगा, और उनके साथ रहेगा। और वह हर समय और हर जगह, वह मनुष्यजाति का भरण-पोषण करेगा और उनकी चरवाही करेगा, उन्हें उसे देखने और छूने देगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि वे कभी पुनः असहाय महसूस न करें। प्रभु यीशु यह भी चाहता था कि लोग यह जानें: इस संसार में उनके जीवन अकेले नहीं हैं। मनुष्यजाति के पास परमेश्वर की देखरेख है, परमेश्वर उनके साथ है; लोग हमेशा परमेश्वर पर आश्रित हो सकते हैं; वह अपने प्रत्येक अनुयायी का परिवार है। परमेश्वर पर आश्रित होने के साथ, मनुष्यजाति अब और एकाकी या असहाय नहीं होगी, और जो उसे अपनी पापबलि के रूप में स्वीकार करते हैं वे अब और पाप में बँधे नहीं रहेंगे। मनुष्य की नज़रों में, उसके कार्य के ये भाग जिन्हें प्रभु यीशु ने अपने पुनरूत्थान के बाद किया बहुत छोटी चीज़ें थीं, परन्तु जिस तरह से मैं उन्हें देखता हूँ, हर एक छोटी सी चीज़ भी बहुत अर्थपूर्ण थी, और बहुत मूल्यवान थी, और वे सभी बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली थीं।

  यद्यपि देह में काम करने का प्रभु यीशु का समय कठिनाईयों और पीड़ा से भरा हुआ था, फिर भी माँस और रक्त की अपनी आध्यात्मिक देह के प्रकटन के माध्यम से, उसने उस समय के मनुष्यजाति को छुड़ाने के देह के अपने कार्य को पूर्णता और सिद्धता से पूरा किया था। उसने देह बन कर अपनी सेवकाई की शुरूआत की, और मनुष्यों के सामने अपने दैहिक रूप में प्रकट होकर उसने अपनी सेवकाई का समापन किया। वह अनुग्रह के युग का अग्रदूत था, उसने मसीह के रूप में अपनी पहचान के माध्यम से अनुग्रह के युग की शुरूआत की। उसने मसीह के रूप में अपनी पहचान के माध्यम से अनुग्रह के युग में अपने कार्य को पूरा किया और उसने अनुग्रह के युग में अपने सभी अनुयायियों को मज़बूत किया और उनकी अगुवाई की। परमेश्वर के कार्य के बारे में ऐसा कहा जा सकता है कि वह जिसे आरम्भ करता है उसे वास्तव में पूरा करता है। इसमें कदम और योजना होते हैं, और यह परमेश्वर की बुद्धि, उसकी सर्वशक्तिमत्ता, और उसके अद्भुत कर्मों से भरपूर होता है। यह परमेश्वर के प्रेम और करुणा से भी भरपूर होता है। निस्संदेह, परमेश्वर के समस्त कार्य की मुख्य डोर मनुष्यजाति के लिए उसकी देखभाल है; यह उसकी परवाह की भावनाओं से व्याप्त है जिसे वह कभी अलग नहीं रख सकता है। बाइबल के इन छन्दों में, अपने पुनरूत्थान के बाद हर एक चीज़ में जो प्रभु यीशु ने की, जो प्रकट हुआ वह मनुष्यजाति के लिए परमेश्वर का न बदलने वाला प्रेम और चिन्ता थे, और साथ ही मनुष्यों के लिए परमेश्वर की कुशल देखरेख और दुलारना था। अब तक, इसमें से कुछ भी नहीं बदला है—क्या तुम लोग इसे देख सकते हो? जब तुम लोग इसे देखते हो, तो क्या तुम लोगों का हृदय स्वतः ही परमेश्वर के करीब नहीं आ जाता है? यदि तुम लोग उस युग में रहते और प्रभु यीशु पुनरूत्थान के बाद तुम लोगों के सामने प्रकट होता, मूर्त रूप में ताकि तुम लोग देख सकते, और यदि वह तुम लोगों के सामने बैठ जाता, रोटी और मछली खाता और तुम लोगों को पवित्रशास्त्र समझाता, तुम लोगों से बातचीत करता, तो तुम लोग कैसा महसूस करते? क्या तुम खुशी महसूस करते? दोषी के बारे में क्या कहेंगे? परमेश्वर के बारे में पिछली ग़लतफहमियाँ और उससे बचना, परमेश्वर के साथ टकराव और उसके बारे में सन्देह—क्या ये सब ग़ायब नहीं हो जाते? क्या परमेश्वर और मनुष्य के बीच का रिश्ता और अधिक उचित नहीं हो जाता?

  बाइबल के इन सीमित अध्यायों की व्याख्या के माध्यम से, क्या तुम लोगों को परमेश्वर के स्वभाव में किसी खोट का पता लगा? क्या तुम लोगों को परमेश्वर के प्रेम में मिलावट का पता लगा! क्या तुम लोगों ने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि में कोई धूर्तता या दुष्टता देखी? निश्चित रूप से नहीं? अब क्या तुम लोग निश्चितता के साथ कह सकते हो कि परमेश्वर पवित्र है? क्या तुम लोग निश्चितता के साथ कह सकते हो कि परमेश्वर के मनोभाव उसके सार और उसके स्वभाव के प्रकाशन हैं। मैं आशा करता हूँ कि इन वचनों को पढ़ लेने के बाद, जो कुछ तुम लोगों ने इससे समझा है उससे तुम लोगों को सहायता मिलेगी और यह स्वभाव में परिवर्तन की तुम लोगों की खोज और परमेश्वर से भय मानने में तुम लोगों को लाभ पहुँचाएगा। मैं यह भी आशा करता हूँ कि ये वचन तुम लोगों के लिए परिणाम उत्पन्न करेंगे जो दिन प्रति दिन बढ़ते ही जाएँगे, इस प्रकार खोज की यह प्रक्रिया तुम लोगों को परमेश्वर के और करीब ले आएगी, और उस उच्च मानक के और करीब ले आएगी जिसकी अपेक्षा परमेश्वर करता है, ताकि तुम लोग सत्य की खोज करने में अब और ऊबा हुआ महसूस न करो और तुम लोग अब और ऐसा महसूस न करो कि सत्य की और स्वभाव में परिवर्तन की खोज एक कष्टप्रद या निरर्थक चीज़ है। इसके बजाए, यह परमेश्वर के सच्चे स्वभाव और परमेश्वर के पवित्र सार की अभिव्यक्ति है जो तुम लोगों को ज्योति की लालसा करने, और न्याय की लालसा करने, और सत्य की खोज करने, परमेश्वर की इच्छा की सन्तुष्टि की खोज करने, और परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किया गया मनुष्य बनने, और एक वास्तविक मनुष्य बनने की अभिलाषा करने के लिए अभिप्रेरित करती है।

स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया


यीशु की कहानी—परमेश्वर के दिल की वाणी—बाइबल की कथाओं की व्याख्या


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