अंतिम दिनों का मसीह - सर्वशक्तिमान परमेश्वर

मसीह क्या है? यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है या स्वयं परमेश्वर है?

010-主耶稣受洗3-ZB-20190620

 

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"फिलिप्पुस ने उससे कहा, 'हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है।' यीशु ने उससे कहा, 'हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। मेरा विश्‍वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्‍वास करो'" (यूहन्ना 14:8-11)।

"मैं और पिता एक हैं" (यूहन्ना 10:30)।

 

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है, तथा मसीह परमेश्वर के आत्मा के द्वारा धारण किया गया देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है बल्कि आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण दिव्यता दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती है। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियों को बनाए रखती है, जबकि दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य करती है। चाहे यह उसकी मानवता हो या दिव्यता, दोनों स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति समर्पित हैं। मसीह का सार पवित्र आत्मा, अर्थात्, दिव्यता है। इसलिए, उसका सार स्वयं परमेश्वर का है; यह सार उसके स्वयं के कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं करेगा, तथा वह संभवतः कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता है जो उसके स्वयं के कार्य को नष्ट करता हो, ना वह ऐसे वचन कहेगा जो उसकी स्वयं की इच्छा के विरूद्ध जाते हों। इसलिए, देहधारी परमेश्वर अवश्य ही कभी भी कोई ऐसा कार्य नहीं करेगा जो उसके अपने प्रबंधन में बाधा उत्पन्न करता हो। यह वह बात है जिसे सभी मनुष्यों को समझना चाहिए। पवित्र आत्मा के कार्य का सार मनुष्य को बचाना तथा परमेश्वर के अपने प्रबंधन के वास्ते है। इसी प्रकार, मसीह का कार्य मनुष्य को बचाना है तथा यह परमेश्वर की इच्छा के वास्ते है। यह देखते हुए कि परमेश्वर देह बन जाता है, वह अपने देह में अपने सार का, इस प्रकार एहसास करता है कि उसका देह उसके कार्य का भार उठाने के लिए पर्याप्त है। इसलिए देहधारी होने के समय के दौरान परमेश्वर के आत्मा का संपूर्ण कार्य मसीह के कार्य के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, तथा देहधारण के पूरे समय के दौरान संपूर्ण कार्य के केन्द्र में मसीह का कार्य होता है। इसे किसी भी अन्य युग के कार्य के साथ मिलाया नहीं जा सकता है। और चूँकि परमेश्वर देहधारी हो जाता है, इसलिए वह अपनी देह की पहचान में कार्य करता है; चूँकि वह देह में आता है, इसलिए वह अपनी देह में उस कार्य को समाप्त करता है जो उसे करना चाहिए। चाहे वह परमेश्वर का आत्मा हो या वह मसीह हो, दोनों परमेश्वर स्वयं हैं, तथा वह उस कार्य को करता है जो उसे करना चाहिए है तथा उस सेवकाई को करता है जो उसे करनी चाहिए।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में "स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का वास्तविक सार है" से उद्धृत

देहधारी मनुष्य के पुत्र ने अपनी मानवता के माध्यम से परमेश्वर की दिव्यता को व्यक्त किया था और परमेश्वर की इच्छा को मनुष्यजाति तक पहुँचाया था। और परमेश्वर की इच्छा और स्वभाव की अभिव्यक्ति के माध्यम से, उसने लोगों के सामने उस परमेश्वर को प्रकट किया जिसे आध्यात्मिक क्षेत्र में देखा और छुआ नहीं जा सकता है। जो लोगों ने देखा वह, मूर्त और हड्डियों तथा माँस वाला, स्वयं परमेश्वर था। तो देहधारी मनुष्य के पुत्र ने परमेश्वर की स्वयं की पहचान, हैसियत, छवि, स्वभाव, और उसके स्वरूप जैसी चीज़ों को ठोस और मानवीय बना दिया। यद्यपि परमेश्वर की छवि के बारे में मनुष्य के पुत्र के बाहरी रूप-रंग की कुछ सीमाएँ थीं, फिर भी उसका सार और स्वरूप पूर्णत: परमेश्वर की स्वयं की पहचान और हैसियत को दर्शाने में पूर्णतः समर्थ थे—अभिव्यक्ति के रूप में मात्र कुछ भिन्नताएँ थीं। चाहे यह मनुष्य के पुत्र की मानवता हो या उसकी दिव्यता, हम नकार नहीं सकते कि वह स्वयं परमेश्वर की पहचान और उसकी हैसियत को दर्शाता था। हालाँकि इस समय के दौरान, परमेश्वर ने देह के माध्यम से कार्य किया, देह के परिप्रेक्ष्य से बात की, और मनुष्य-जाति के सामने मनुष्य के पुत्र की पहचान और हैसियत के साथ खड़ा हुआ, और उसने लोगों को मनुष्यजाति के बीच परमेश्वर के सच्चे वचनों और कार्य का सामना और अनुभव करने का अवसर दिया। उसने लोगों को विनम्रता के बीच उसकी दिव्यता और उसकी महानता में अंतर्दृष्टि, और साथ ही परमेश्वर की प्रामाणिकता और वास्तविकता की एक प्रारम्भिक समझ और एक प्रारम्भिक परिभाषा भी प्राप्त करने दी। भले ही प्रभु यीशु के द्वारा पूर्ण किया गया कार्य, कार्य करने के उसके तरीके, और जिस परिप्रेक्ष्य से उसने बोला था वे आध्यात्मिक क्षेत्र में परमेश्वर के सच्चे व्यक्तित्व से भिन्न थे, फिर भी उसके बारे में हर चीज़ सचमुच में स्वयं परमेश्वर को दर्शाती थी जिसे मनुष्यों ने पहले कभी नहीं देखा था—इसे नकारा नहीं जा सकता है! अर्थात्, चाहे परमेश्वर किसी भी रूप में प्रकट हो, चाहे वह किसी भी परिप्रेक्ष्य में बात करे, या वह किस छवि में मनुष्य-जाति के सामने आता है, परमेश्वर और किसी को नहीं बल्कि स्वयं को दर्शाता है। वह किसी मनुष्य को नहीं दर्शा सकता है—वह किसी भ्रष्ट मनुष्य को नहीं दर्शा सकता है। परमेश्वर स्वयं परमेश्वर है, और इसे नकारा नहीं जा सकता है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" से उद्धृत

जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण देह का चोला धारण किया था और उसके पास एक सृजित प्राणी का बाह्य आवरण था। यद्यपि उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी स्वरूप अभी भी एक साधारण व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह "मनुष्य का पुत्र" बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी कवच के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ है। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसा कि तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। क्या तुम लोगों को अभी भी प्रभु की प्रार्थना याद है जो यीशु ने तुम्हें याद करने के लिए सिखाई थी? "हे पिता हमारे, जो स्वर्ग में है…।" उसने सभी मनुष्यों से स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाने को कहा। और तब से उसने भी उसे पिता कहा, उसने ऐसा उस व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से किया था जो तुम सभी के साथ समान स्तर पर खड़ा था। चूंकि तुमने पिता के नाम से स्वर्ग में परमेश्वर को बुलाया था, इस से पता चलता है कि यीशु ने स्वयं को तुम सबके साथ समान स्तर पर देखा, और पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा चुने गए व्यक्ति (अर्थात परमेश्वर के पुत्र) के रूप में देखा। यदि तुम लोग परमेश्वर को "पिता" कहते हो, तो क्या यह इसलिए नहीं है कि तुम सब सृजित प्राणी हो? पृथ्वी पर यीशु का अधिकार चाहे जितना भी अधिक हो, क्रूस पर चढ़ने से पहले, वह मात्र मनुष्य का पुत्र था, वह पवित्र आत्मा (अर्थात, परमेश्वर) द्वारा नियंत्रित था, और पृथ्वी के सृजित प्राणियों में से एक था, क्योंकि उसने अभी भी अपना काम पूरा नहीं किया था। इसलिए, स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना पूरी तरह से उसकी विनम्रता और आज्ञाकारिता थी। परमेश्वर (अर्थात, स्वर्ग में आत्मा) को उसका इस प्रकार संबोधन करना हालांकि, यह साबित नहीं करता कि वह स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा का पुत्र है। बल्कि, यह केवल यही है कि उसका दृष्टिकोण अलग है, न कि वह एक अलग व्यक्ति है। अलग व्यक्तियों का अस्तित्व एक मिथ्या है! क्रूस पर चढ़ने से पहले, यीशु मनुष्य का पुत्र था जो शरीर की सीमाओं से बंधा था, और उसके पास पूरी तरह से आत्मा का अधिकार नहीं था। यही कारण है कि वह केवल एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से परमेश्वर की इच्छा तलाश सकता था। यह वैसा ही है जैसा गेथसमनी में उसने तीन बार प्रार्थना की थी: "जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।" क्रूस पर रखे जाने से पहले, वह बस यहूदियों का राजा था; वह मसीह, मनुष्य का पुत्र था, और महिमा का शरीर नहीं था। यही कारण है कि, एक सृजित प्राणी के दृष्टिकोण से, उसने परमेश्वर को पिता बुलाया।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में "क्या त्रित्व का अस्तित्व है?" से उद्धृत

अभी भी ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, "क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?" यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को साक्ष्य देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, "मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है," क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है। युग में परिवर्तन, काम की आवश्यकताओं, और उसके प्रबंधन योजना के विभिन्न चरणों के कारण, जिस नाम से मनुष्य उसे बुलाता है वह भी अलग हो जाता है। जब वह काम के पहले चरण को करने के लिए आया था, तो उसे केवल यहोवा, इस्राएलियों का चरवाहा ही कहा जा सकता था। दूसरे चरण में, देहधारी परमेश्वर को केवल प्रभु और मसीह कहा जा सकता था। परन्तु उस समय, स्वर्ग में आत्मा ने केवल यह बताया था कि वह परमेश्वर का प्यारा पुत्र है, और उसने परमेश्वर का एकमात्र पुत्र होने का उल्लेख नहीं किया था। ऐसा हुआ ही नहीं था। परमेश्वर की एकमात्र सन्तान कैसे हो सकती है? तो क्या परमेश्वर मनुष्य नहीं बनता? क्योंकि वह देहधारण था, उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा गया, और इस से, पिता और पुत्र के बीच का संबंध आया। यह बस स्वर्ग और पृथ्वी के बीच जो विभाजन है उसके कारण हुआ। यीशु ने देह के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना की। चूंकि उसने इस तरह की सामान्य मानवता के देह को धारण किया था, यह उस देह के परिप्रेक्ष्य से है जो उसने कहा: मेरा बाहरी आवरण एक सृजित प्राणी का है। चूंकि मैंने इस धरती पर आने के लिए देह धारण किया है, अब मैं स्वर्ग से बहुत दूर हूँ। इस कारण से, वह केवल पिता परमेश्वर के सामने देह के परिप्रेक्ष्य से ही प्रार्थना कर सकता था। यह उसका कर्तव्य था, और जो परमेश्वर के देहधारी आत्मा में होना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर नहीं है क्योंकि वह देह के दृष्टिकोण से पिता से प्रार्थना करता है। यद्यपि उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा जाता है, वह अभी भी परमेश्वर है, क्योंकि वह आत्मा का देहधारण है, और उसका सार अब भी आत्मा है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में "क्या त्रित्व का अस्तित्व है?" से उद्धृत

यदि तुम लोगों में से कोई भी कहता है कि त्रित्व वास्तव में मौजूद है, तो वह समझाए कि तीन व्यक्तियों में यह एक परमेश्वर क्या है। पवित्र पिता क्या है? पुत्र क्या है? पवित्र आत्मा क्या है? क्या यहोवा पवित्र पिता है? क्या यीशु पुत्र है? फिर पवित्र आत्मा का क्या? क्या पिता एक आत्मा नहीं है? पुत्र का सार भी क्या एक आत्मा नहीं है? क्या यीशु का काम पवित्र आत्मा का काम नहीं था? एक समय आत्मा द्वारा किया गया यहोवा का काम यीशु के काम के ही समान नहीं था? परमेश्वर के पास कितनी आत्माएं हो सकती हैं? तुम्हारे स्पष्टीकरण के अनुसार, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन जन एक हैं; यदि ऐसा है, तो तीन आत्माएं हैं, लेकिन तीन आत्माओं का अर्थ है कि तीन परमेश्वर हैं। इसका मतलब है कि कोई भी एक सच्चा परमेश्वर नहीं है; इस प्रकार के परमेश्वर के पास अभी भी परमेश्वर का निहित पदार्थ कैसे हो सकता है? यदि तुम मानते हो कि केवल एक ही परमेश्वर है, तो उसका एक पुत्र कैसे हो सकता है और वह पिता कैसे बन सकता है? क्या यह सब केवल तुम्हारी धारणाएं नहीं हैं? केवल एक परमेश्वर है, इस परमेश्वर में केवल एक ही व्यक्ति है, और परमेश्वर का केवल एक आत्मा है, वैसा ही जैसा कि बाइबल में लिखा गया है कि "केवल एक पवित्र आत्मा और केवल एक ही परमेश्वर है"। जिस पिता और पुत्र के बारे में तुम बोलते हो वे चाहे अस्तित्व में हों, फिर भी एक ही परमेश्वर है, और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का सार जिसे तुम सब मानते हो, वह पवित्र आत्मा का सार है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर एक आत्मा है, लेकिन वह देहधारण में और मनुष्यों के बीच रहने के साथ-साथ सभी चीजों से ऊँचा होने में सक्षम है। उसका आत्मा समस्त-समावेशी और सर्वव्यापी है। वह एक ही समय पर देह में हो सकता है और पूरे विश्व में हो सकता है। चूंकि सभी लोग कहते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, फिर एक ही परमेश्वर है, जो किसी की इच्छा पर विभाजित नहीं होता! परमेश्वर केवल एक आत्मा है, और केवल एक ही व्यक्ति है; और वह परमेश्वर का आत्मा है। यदि तुम कहते हो, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, तो क्या वे तीन परमेश्वर नहीं हैं? पवित्र आत्मा एक तत्व है, पुत्र दूसरा है, और पिता एक और है। वे विशिष्ट सार के अलग-अलग व्यक्ति हैं, तो वे एक इकलौते परमेश्वर का हिस्सा कैसे हो सकते हैं? पवित्र आत्मा एक आत्मा है; यह मनुष्य के लिए समझने में आसान है। यदि ऐसा है तो, पिता और भी अधिक एक आत्मा है। वह पृथ्वी पर कभी नहीं उतरा और कभी भी देह नहीं बना; वह मनुष्यों के दिल में यहोवा परमेश्वर है, और वह निश्चित रूप से एक आत्मा भी है। तो उसके और पवित्र आत्मा के बीच संबंध क्या है? क्या यह पिता और पुत्र के बीच का संबंध है? या यह पवित्र आत्मा और पिता के आत्मा के बीच का रिश्ता है? क्या प्रत्येक आत्मा का सार एकसमान है? या पवित्र आत्मा पिता का एक साधन है? इसे कैसे समझाया जा सकता है? और फिर पुत्र और पवित्र आत्मा के बीच क्या संबंध है? क्या यह दो आत्माओं का सम्बन्ध है या एक मनुष्य और आत्मा के बीच का संबंध है? ये सभी ऐसे मामले हैं जिनका कोई स्पष्टीकरण नहीं हो सकता है! यदि वे सभी एक आत्मा हैं, तो तीन व्यक्तियों की कोई बात नहीं हो सकती, क्योंकि वे एक आत्मा के हैं। यदि वे अलग-अलग व्यक्ति होते, तो उनकी आत्मा शक्ति में भिन्न होती, और बस वे एक ही आत्मा नहीं हो सकते थे। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करता और उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करता है, प्रत्येक एक ओहदे और आत्मा के साथ है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ, आकाश और पृथ्वी, और उसके भीतर की सारी चीज़ें क्या पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा के द्वारा बनाई गई थीं? कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने यह सब एक साथ बनाया। फिर किसने मानवजाति को छुड़ाया? क्या यह पवित्र आत्मा था, पुत्र था या पिता? कुछ लोग कहते हैं कि वह पुत्र था जिसने मानवजाति को छुड़ाया था। फिर सार में पुत्र कौन है? क्या वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण नहीं है? एक सृजित आदमी के परिप्रेक्ष्य से वो देहधारी स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाता है। क्या तुम नहीं जानते हो कि यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण से हुआ था? उसके भीतर पवित्र आत्मा है; तुम कुछ भी कहो, वह अभी भी स्वर्ग में परमेश्वर के साथ एकसार है, क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है। पुत्र का यह विचार असत्य है। यह एक आत्मा है जो सभी काम करता है; केवल परमेश्वर स्वयं, अर्थात, परमेश्वर का आत्मा अपना काम करता है। परमेश्वर का आत्मा कौन है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है जो यीशु में काम करता है? यदि काम पवित्र आत्मा (अर्थात, परमेश्वर का आत्मा) द्वारा नहीं किया गया था, तो क्या उसका काम स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता था?

— "वचन देह में प्रकट होता है" में "क्या त्रित्व का अस्तित्व है?" से उद्धृत

मनुष्य ने जो सबसे पहले देखा वह यह था कि पवित्र आत्मा यीशु पर एक कबूतर की तरह उतर रहा है; यह यीशु के लिए विशेष आत्मा नहीं था, बल्कि पवित्र आत्मा था। तो क्या यीशु का आत्मा पवित्र आत्मा से अलग हो सकता है? अगर यीशु यीशु है, पुत्र है, और पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है, तो वे एक कैसे हो सकते हैं? यदि ऐसा है तो काम नहीं किया जा सकता है। यीशु के भीतर का आत्मा, स्वर्ग में आत्मा, और यहोवा का आत्मा सब एक हैं। इसे पवित्र आत्मा, परमेश्वर का आत्मा, सात गुना सशक्त आत्मा और सर्व सयुंक्त आत्मा कहा जा सकता है। परमेश्वर का आत्मा बहुत से काम कर सकता है। वह दुनिया को बनाने और पृथ्वी को बाढ़ द्वारा नष्ट करने में सक्षम है; वह सारी मानव जाति को मुक्ति दिला सकता है, और इसके अलावा, सारी मानव जाति को जीत और नष्ट कर सकता है। ये सारे काम स्वयं परमेश्वर द्वारा किये गए हैं और उसके स्थान पर परमेश्वर के किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता था। उसके आत्मा को यहोवा और यीशु के नाम से, साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम से भी बुलाया जा सकता है। वह प्रभु और मसीह है। वह मनुष्य का पुत्र भी बन सकता है। वह स्वर्ग में भी है और पृथ्वी पर भी है; वह ब्रह्मांडों के ऊपर और भीड़ के बीच में है। वह स्वर्ग और पृथ्वी का एकमात्र स्वामी है! सृष्टि के समय से अब तक, यह काम खुद परमेश्वर के आत्मा द्वारा किया गया है। यह कार्य स्वर्ग में हो या देह में, सब कुछ उसकी आत्मा से किया जाता है। सभी प्राणी, चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर, उसकी सर्वशक्तिमान हथेली में हैं; यह सब स्वयं परमेश्वर का काम है और उसके स्थान पर किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता है। स्वर्ग में, वह आत्मा है,लेकिन खुद परमेश्वर भी है; मनुष्यों के बीच में, वह शरीर है लेकिन वह स्वयं परमेश्वर बना रहता है। यद्यपि उसे हज़ारों हज़ार नामों से बुलाया जाता है, तो भी वह स्वयं है, और सारे काम[क] उसके आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति हैं। उसके क्रूसीकरण के माध्यम से सारी मानव जाति का छुटकारा उसके आत्मा का प्रत्यक्ष काम था, और वैसे ही अंत के दिनों के दौरान सभी देशों और सभी भू भागों के लिए उसकी घोषणा भी। हर समय, परमेश्वर को केवल सर्वशक्तिमान और एक सच्चा परमेश्वर, सभी समावेशी स्वयं परमेश्वर कहा जा सकता है। अलग-अलग व्यक्ति अस्तित्व में नहीं हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का यह विचार तो बिल्कुल नहीं है! स्वर्ग और पृथ्वी में केवल एक ही परमेश्वर है!

— "वचन देह में प्रकट होता है" में "क्या त्रित्व का अस्तित्व है?" से उद्धृत

परमपिता परमेश्वर कौन है? एक सच्चे   परमेश्वर को जानो। यह हमारे भाग्य से संबंधित है

यीशु मसीह की कहानी—प्रभु को जानने में आपकी मदद—बाइबल की व्याख्या 2019

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