अंतिम दिनों का मसीह - सर्वशक्तिमान परमेश्वर

विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए

परमेश्वर के वचन - विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए

 

वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? तुमने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण तुम कितने बदले हो? अब तुम सभी जानते हो कि परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह उसके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए, इत्यादि है। जैसा यह है, यदि तुम परमेश्वर को सिर्फ़ देह के कल्याण के लिए या क्षणिक आनंद के लिए प्रेम करते हो, तो भले ही, अंत में, परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम इसके शिखर पर पहुँचता है और तुम कुछ भी नहीं माँगते, यह "प्रेम" जिसे तुम खोजते हो अभी भी अशुद्ध प्रेम होता है, और परमेश्वर को भाने वाला नहीं होता। वे लोग जो परमेश्वर के लिए प्रेम का उपयोग अपने बोझिल जीवन को सम्पन्न बनाने और अपने हृदय के एक शून्य को भरने के लिए करते हैं, ये वे हैं जो अपने जीवन को आसानी से जीना चाहते हैं, ना कि वे जो सचमुच में परमेश्वर को प्रेम करना चाहते हैं। इस प्रकार का प्रेम व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध होता है, भावनात्मक आनंद की खोज होता है, और परमेश्वर को इस प्रकार के प्रेम की आवश्यकता नहीं है। तो फिर, तुम्हारा प्रेम कैसा है? तुम परमेश्वर को किस लिए प्रेम करते हो? तुम में परमेश्वर के लिए कितना सच्चा प्रेम है? तुम लोगों में से अधिकतर का प्रेम वैसा ही है जिसका पहले जिक्र किया गया था। इस प्रकार का प्रेम सिर्फ़ यथापूर्व स्थिति को बरकरार रख सकता है; अनन्त स्थिरता को प्राप्त नहीं कर सकता, न ही मनुष्य में जड़ें जमा सकता है। इस प्रकार का प्रेम एक ऐसा फूल है जो खिलने के बाद फल नहीं देता और मुरझा जाता है। दूसरे शब्दों में, तुमने जब एक बार परमेश्वर को इस ढंग से प्रेम कर लिया और तुम्हें इस मार्ग पर आगे ले जाने वाला कोई ना हो, तो तुम गिर जाओगे। यदि तुम परमेश्वर को सिर्फ़ प्रेमी परमेश्वर के समय ही प्रेम कर सकते हो और उसके बाद तुम अपने जीवन स्वभाव में कोई बदलाव नहीं लाते, तो फिर तुम अंधकार में निरंतर घिरते चले जाओगे, तुम बच नहीं पाओगे, और शैतान द्वारा बांधे जाने और मूर्ख बनाये जाने से मुक्त होने में असमर्थ होगे। ऐसा कोई भी मनुष्य परमेश्वर को पूरी तरह से प्राप्त नहीं हो सकता; अंत में, उनकी आत्मा, प्राण, और शरीर शैतान के ही होंगे। यह असंदिग्ध है। वे सभी जो पूरी तरह से परमेश्वर को प्राप्त नहीं हो पाएँगे अपने मूल स्थान में वापस लौट जायेंगे, अर्थात, वापस शैतान के पास, और वे परमेश्वर के दंड के अगले चरण को स्वीकार करने के लिये, उस झील में जायेंगे जो आग और गन्धक से जलती रहती है। जो परमेश्वर के हो चुके हैं, वो वे होते हैं जो शैतान के खिलाफ विद्रोह करते हैं और उसके शासन से बच जाते हैं। ऐसे मनुष्य राज्य के लोगों में आधिकारिक रूप से गिने जायेंगे। इस तरह से राज्य के लोग अस्तित्व में आते हैं। क्या तुम इस प्रकार के व्यक्ति बनने को तैयार हो? तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किये जाने के लिए तैयार हो? क्या तुम शैतान के शासन से बचना और वापस परमेश्वर के पास जाना चाहते हो? क्या तुम अब शैतान के हो या तुम राज्य के लोगों में गिने जाते हो? ऐसी सारी चीज़ें स्पष्ट होनी चाहिए और आगे किसी भी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए।

बीते समयों में, अनेक लोग मनुष्य की महत्वाकांक्षा और धारणाओं के साथ मनुष्य की आशाओं के लिए आगे बढ़े। अब इन मामलों पर चर्चा नहीं की जाएगी। कुंजी है अभ्यास का ऐसा ढंग खोजना जो तुम लोगों में से हर एक को परमेश्वर के सम्मुख एक सामान्य स्थिति बनाये रखने और धीरे-धीरे शैतान के प्रभाव की बेड़ियों को तोड़ डालने में सक्षम करे, ताकि तुम लोग परमेश्वर को प्राप्त हो सको और पृथ्वी पर वैसे जियो जैसे परमेश्वर तुमसे चाहता है। केवल इसी से परमेश्वर की इच्छा पूरी हो सकती है। परमेश्वर में विश्वास तो बहुत से लोग करते हैं, फिर भी न तो यह जानते हैं कि परमेश्वर क्या चाहता है और न ही यह कि शैतान क्या चाहता है। वे मूर्खता से विश्वास करते हैं और दूसरों का अंधानुकरण करते हैं, और इसलिए उनके पास कभी भी एक सामान्य ईसाई जीवन नहीं होता; मनुष्य का परमेश्वर के साथ जो सामान्य संबंध है वो होना तो दूर, उनके पास सामान्य व्यक्तिगत संबंध तक नहीं होते। इससे यह देखा जा सकता है कि मनुष्य की समस्याएं और गलतियां, और दूसरे कारण जो परमेश्वर की इच्छा के आड़े आते हैं बहुत हैं। यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि मनुष्य ने अपने आप को सही रास्ते पर नहीं रखा है, न ही उसने वास्तविक जीवन का अनुभव लिया है। तो इस प्रकार यह सही रास्ते पर आना क्या है? सही रास्ते पर आने का अर्थ है कि तुम सब समय परमेश्वर के सामने अपने हृदय को शांत रख सकते हो और स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के साथ संवाद कर सकते हो, तुम्हें क्रमशः यह पता लगने लगता है कि मनुष्य में क्या कमी है और परमेश्वर के विषय में एक गहरा ज्ञान होने लगता है। इसके द्वारा तुम्हें प्रतिदिन अपनी आत्मा में एक नया दृष्टि बोध और प्रकाश प्राप्त होता है; तुम सत्य में प्रवेश करने की अधिकाधिक लालसा करने लगते हो। हर दिन नया प्रकाश और नई समझ होती है। इस रास्ते के द्वारा, धीरे-धीरे तुम शैतान के प्रभाव से मुक्त होते जाते हो, और तुम्हारा जीवन महान बनता जाता है। इस प्रकार का व्यक्ति सही रास्ते पर आ चुका होता है। उपरोक्त के मुक़ाबले अपने वास्तविक अनुभवों का मूल्यांकन करो और तुमने परमेश्वर के विश्वास का जो रास्ता चुना है उसे उपरोक्त के मुकाबले जांचो। क्या तुम वह व्यक्ति हो जो सही रास्ते पर आ चुका है? तुम किन मामलों में शैतान की बेड़ियों और शैतान के प्रभाव से मुक्त हो चुके हो? यदि तुम सही रास्ते पर आ चुके हो तब भी शैतान के साथ तुम्हारे संबंधों का टूटना बाकी है। इस तरह, क्या परमेश्वर के प्रेम की इस तलाश का निष्कर्ष एक ऐसे प्रेम के रूप में होगा जो प्रमाणिक, समर्पित, और शुद्ध हो? तुम कहते हो कि परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम दृढ़ और हार्दिक है, फिर भी तुम शैतान की बेड़ियों से अपने आपको मुक्त नहीं कर पाये हो। क्या तुम परमेश्वर को मूर्ख नहीं बना रहे हो? यदि तुम परमेश्वर के लिए विशुद्ध प्रेम प्राप्त करना चाहते हो, परमेश्वर को प्राप्त हो जाना चाहते हो और चाहते हो कि तुम राज्य के लोगों में गिने जाओ तो तुम्हें पहले खुद को सही रास्ते पर लाना होगा।

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