अंतिम दिनों का मसीह - सर्वशक्तिमान परमेश्वर

यीशु मसीह के पुनरुत्थान के पश्चात, उनका मनुष्य को दिखाई देने का क्या अर्थ था?

चेंग हांग के द्वारा

बाइबल में यह अभिलिखित है: "वे ये बातें कह ही रहे थे कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ, और उनसे कहा, 'तुम्हें शान्ति मिले।' परन्तु वे घबरा गए और डर गए, और समझे कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। उसने उनसे कहा, 'क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो कि मैं वही हूँ। मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।' यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। जब आनन्द के मारे उनको प्रतीति न हुई, और वे आश्‍चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, 'क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?' उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का टुकड़ा दिया। उसने लेकर उनके सामने खाया" (लूका 24:26-43)। मैं जब भी इन पदों को पढ़ता हूँ, तो मैं पतरस, यूहन्ना और अन्य लोगों से ईर्ष्या करता हूँ। यीशु जब यहूदिया में अपना कार्य कर रहे थे, तो वह रात-दिन सर्वदा अपने शिष्यों के साथ होते थे, और जब वह पुनर्जीवित हो गए, तब भी उन्होंने पहले के समान उनकी देखभाल की, उन्हें दिखाई दिए, उन्हें पवित्रशास्त्र समझाया और उन्हें शिक्षा प्रदान की। पतरस और अन्य लोग सौभाग्यशाली थे कि उन्हें प्रभु के द्वारा उनके शिष्यों के रूप में चुने गये और वे अपने कानों से प्रभु यीशु की शिक्षाओं को सुन पाए—वे बहुत अधिक आशीषित थे! उसके पश्चात मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा और मुझे प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के पश्चात मनुष्य को दिखाई देने के पीछे वास्तव में उनकी जो इच्छा थी वो समझ आ गई और यह भी समझ आ गया कि इस कार्य में परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि और अधिक शामिल थे। मैंने वास्तव में समझ लिया कि प्रभु यीशु मसीह का अपने पुनरुत्थान के पश्चात मनुष्य को दिखाई देना वास्तव में अत्यधिक अर्थपूर्ण था!

परमेश्वर के वचन कहते हैं, "वह पहली चीज़ जो प्रभु यीशु ने अपने पुनरूत्थान के बाद की वह थी कि उसने इस बात की पुष्टि करने के लिए कि वह अस्तित्व में है, और अपने पुनरूत्थान को साबित करने के लिए हर एक को उसे देखने दिया था। इसके अतिरिक्त, उसने लोगों के साथ अपने रिश्ते को फिर से उस रिश्ते के साथ पुनर्स्थापित किया जैसा उसका उनके साथ तब था जब वह देह में कार्य कर रहा था, और वह उनका मसीह था जिसे वे देख और छू सकते थे। इस तरह, एक परिणाम यह हुआ कि लोगों को सन्देह नहीं रहा कि प्रभु यीशु को क्रूस पर कीलों से ठोके जाने के बाद उसे मृत्यु से पुनर्जीवित किया गया था, और मनुष्य-जाति को छुड़ाने के प्रभु यीशु के कार्य में कोई सन्देह नहीं रहा था। और दूसरा परिणाम यह हुआ कि पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु का लोगों के सामने प्रकट होने और लोगों को उसे देखने और छूने देने के तथ्य ने मनुष्यजाति को अनुग्रह के युग में दृढ़ता से सुरक्षित किया। इस समय के बाद से, प्रभु यीशु के "अन्तर्धान" या "छोड़कर चले जाने" की वजह से, लोग पिछले युग, व्यवस्था के युग, में नहीं लौट सकते थे, लेकिन वे प्रभु यीशु की शिक्षाओं और उसके द्वारा किए गए कार्य का अनुसरण करके लगातार आगे बढ़ना जारी रखते। इस प्रकार, अनुग्रह के युग के कार्य में औपचारिक रूप से एक नये चरण का मार्ग प्रशस्त हो चुका था, और जो लोग व्यवस्था के अधीन रहे थे वे उसके बाद औपचारिक रूप से व्यवस्था से बाहर आ गए, और उन्होंने एक नए युग में, एक नई शुरूआत के साथ प्रवेश किया। पुनरूत्थान के बाद मनुष्यजाति के सामने प्रभु यीशु के प्रकट होने के ये बहुआयामी अर्थ हैं" ("परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III")।

परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के पश्चात, मैं अंततः समझ गया कि प्रभु यीशु के अपने पुरुत्थान के पश्चात चालीस दिनों तक लोगों को दिखाई देने के पीछे दो अर्थ थे। एक तो यह कि वह लोगों को यह बताने के लिए आए कि परमेश्वर व्यवस्था के युग को समाप्ति पर ले आए हैं, उन्होंने अनुग्रह के युग को समाप्त कर दिया है और वह मनुष्य को नए युग में ले जाएँगे। दूसरा अर्थ यह था कि परमेश्वर ने ऐसा लोगों को इस बात को स्वीकारने के योग्य बनाने के लिए किया कि प्रभु यीशु स्वयं देहधारी परमेश्वर थे और इस प्रकार परमेश्वर में उनके विश्वास को मज़बूत किया।

1. प्रभु यीशु मनुष्य को नए युग में ले जाने और उन्हें अनुग्रह के युग में दृढ़ता से स्थापित करने के लिए पुनरुत्थित होकर उन्हें दिखाई दिए

प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग का सूत्रपात किया और व्यवस्था के युग को समाप्त कर दिया। उन्होंने, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17), के मार्ग को अभिव्यक्त किया। उन्होंने रोगियों को चंगा करने, दुष्टात्माओं को निकालने, लंगड़ों को चलाने और अन्धों को दृष्टि प्रदान करने, जैसे अनेक आश्चर्यकर्म किए, ताकि लोग उस भरपूर अनुग्रह का आनन्द उठा सकें, जो परमेश्वर से आया था। परन्तु उस समय के लोग परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते थे, और उनके पास थोड़ी भी वास्तविक समझ नहीं थी कि यीशु ही परमेश्वर का देहधारण थे। जब प्रभु यीशु क्रूसित किए गए थे, लोग इससेअनभिज्ञ थे कि यह प्रकट करता है कि परमेश्वर ने छुटकारे के कार्य को पूरा कर दिया था, इसके स्थान पर वे नकारात्मकता और दुर्बलता में गिर गए। लोगों ने प्रभु यीशु की पहचान पर सन्देह करना आरम्भ कर दिया, कुछ लोग तो मन्दिर में भी लौट गए और पुराना नियम की व्यवस्था का पालन करना आरम्भ कर दिया। इस रीति से लोग अभी भी अपने पापों के लिए व्यवस्था के द्वारा मृत्युदंड पाने के खतरे में थे, और मनुष्यजाति के छुटकारे के लिए प्रभु यीशु के द्वारा किया गया कार्य अधूरा ही रह गया था। प्रभु यीशु ने मनुष्य के भीतरी हृदय की जाँच की और वह अच्छी तरह से उनकी आवश्यकताओं और कमियों को समझते थे। इसलिए अपने पुनरुत्थान के पश्चात सबसे पहले वह अपने शिष्यों को दिखाई दिए और उनसे बातचीत की, उनके साथ एक वास्तविक सम्पर्क बनाया और उन्हें यह देखने के योग्य बनाया वह वास्तव में मृतकों में से लौटकर आ चुके हैं और यह कि उन्होंने मनुष्यजाति को छुड़ाने के लिए अपने कार्य को पूरा कर दिया है और एक नए युग को आरम्भ कर दिया है। उसके पश्चात मनुष्यजाति ने व्यवस्था को पीछे छोड़ दिया और एक नए युग—अनुग्रह के युग—में प्रवेश किया। प्रभु यीशु के कार्यों और वचनों के मार्गदर्शन में लोगों ने उनकी शिक्षाओं के अनुसार अभ्यास करना आरम्भ कर दिया, उन्होंने क्रूस वहन किया और प्रभु का अनुसरण करते हुए "तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्‍टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो" (मरकुस 16:15)। की उनकी शिक्षा पर चलते रहे। इस प्रकार वे स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार को फैलाने लगे और उन्होंने प्रभु यीशु के नाम की गवाही दी ताकि सभी लोग इसे स्वीकार कर सकें और उनके उद्धार को प्राप्त कर सकें। आज, प्रभु यीशु का सुसमाचार पूरे संसार में फैल चुका है और यह पूरी तरह से प्रभु यीशु के मृतकों में से लौट आने के पश्चात मनुष्य को दिखाई देने का ही परिणाम है। इससे हम देख सकते हैं अपने पुनरुत्थान के पश्चात उनका मनुष्य को दिखाई देना कितना अर्थपूर्ण था!

2. पुनरुथान के पश्चात यीशु का मनुष्यों को दिखाई देना, उन्हें यह पुष्टि करने के योग्य बनाता है कि वह स्वयं परमेश्वर का देहधारण हैं, इस प्रकार उन्होंने स्वयं में उनके विश्वास को मजबूत किया

परमेश्वर के वचन कहते हैं, "जिस दौरान प्रभु यीशु देह में होकर काम करता था, उसके अधिकतर अनुयायी उसकी पहचान और उसके द्वारा कही गई चीज़ों को पूरी तरह से सत्यापित नहीं कर सकते थे। जब वह क्रूस पर चढ़ गया, तो उनके चेलों की प्रवृत्ति अपेक्षा की थी; जब उसे क्रूस पर कीलों से ठोक दिया गया था उस समय से लेकर उसे क़ब्र में डाले जाने तक, उसके प्रति लोगों की निराश प्रवृत्ति थी। इस समय के दौरान, लोगों ने पहले से ही अपने हृदय में उन चीज़ों के बारे में सन्देह करने से नकारने की ओर जाना आरम्भ कर दिया था जिन्हें प्रभु यीशु ने अपने देह में रहने के दिनों के दौरान कहा था। और जब वह क़ब्र से बाहर आया, और एक-एक करके लोगों के सामने प्रकट हुआ, तो वे अधिकांश लोग जिन्होंने उसे अपनी आँखों से देखा था या उसके पुनरूत्थान के समाचार को सुना था धीरे-धीरे नकारने से संशय की ओर आने लगे थे। अपने पुनरूत्थान के बाद जिस समय प्रभु यीशु ने अपने पंजर में थोमा से उसका हाथ डलवाया, जिस समय प्रभु यीशु ने भीड़ के सामने रोटी तोड़ी और खायी, और उसके बाद उनके सामने भुनी हुई मछली खायी, केवलतभी उन्होंने सचमुच में उस तथ्य को स्वीकार किया कि प्रभु यीशु ही देह में मसीह है। तुम लोग ऐसा कह सकते हो कि यह ऐसा था मानो कि तब माँस और रक्त वाला यह आध्यात्मिक शरीर उन लोगों के सामने खड़ा हुआ उन्हें किसी स्वप्न से जगा रहा थाः मनुष्य का पुत्र जो उनके सामने खड़ा था वही एक था जो अतिप्रचीन समय से अस्तित्व में था। उसका एक आकार, और माँस और हड्डियाँ थीं, और वह पहले से ही मनुष्यजाति के साथ लम्बे समय तक रह और खा चुका था… इस समय, लोगों ने महसूस किया कि उसका अस्तित्व बहुत यथार्थ, और बहुत अद्भुत था; वे भी बहुत आनन्दित और प्रसन्न थे, और साथ ही मनोभाव से भी भरे थे। और उसके पुनः-प्रकटन ने सचमुच में लोगों को उसकी विनम्रता को देखने, और उसकी नज़दीकी, और उसकी चाहत, और मनुष्यजाति के प्रति उसकी अनुरक्ति को महसूस करने दिया। इस संक्षिप्त पुनर्मिलन ने उन लोगों को जिन्होंने प्रभु यीशु को देखा था यह महसूस कराया मानो कि एक पूरा जीवन काल गुज़र चुका हो। उनके खोए हुए, भ्रमित, भयभीत, चिन्तित, लालायित और संवेदनशून्य हृदय को आराम मिला। वे अब और सन्देहपूर्ण या निराश नहीं थे क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि अब उनके पास आशा थी और कुछ ऐसा था जिस पर वे भरोसा कर सकते थे। उनके सामने खड़ा मनुष्य का पुत्र पूरी अनन्तता तक उनके पीछे रहेगा, वह उनका दृढ़ दुर्ग, और हमेशा के लिए उनका आश्रय होगा" ("परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III")।

परमेश्वर के वचन प्रभु यीशु के उनके पुनरुत्थान के पश्चात मनुष्य को दिखाई देने के एक अन्य अर्थ को स्पष्ट करते हैं। मनुष्यों के बीच प्रभु यीशु ने देहधारण किया और साढ़े तीन वर्ष अपने कार्य किए और अनेकों ने उनके उद्धार को स्वीकार किया और प्रभु के पीछे चले। परन्तु अनेक लोगों को थोड़ी भी वास्तविक समझ नहीं थी कि प्रभु यीशु, मसीह थे और वह स्वयं परमेश्वर थे। इसीलिए, जब यीशु क्रूस पर चढ़ाए जाने वाले थे, तब लोगो ने घटनाओं को होते हुए देखा और उन्होंने अपने हृदयों में सन्देह करना आरम्भ कर दिया, उन्होंने अपने आप से पूछा: क्या प्रभु यीशु वास्तव में परमेश्वर हैं? यदि वह मसीह और स्वयं परमेश्वर हैं, तो वह रोमी अधिकारियों के द्वारा पकड़े कैसे जा सकते हैं और सैनिकों के द्वारा कोड़े कैसे खा सकते हैं, सैनिकों द्वारा उनका उपहास कैसे किया जा सकता है फिर उन्हें क्रूस पर कैसे चढ़ाया जा सकता है? विशेष रूप से, जब प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाया जा रहा था, तो वे उनसे अत्यधिक निराश हो गए, उन्होंने इन्कार कर दिया कि वह स्वयं परमेश्वर का देहधारण थे और उन्होंने उन वचनों का भी इन्कार कर दिया जो उन्होंने अभिव्यक्त किए थे, इसके स्थान पर उन्होंने विश्वास कर लिया कि यीशु एक आम व्यक्ति के समान मारे जाएँगे और वह सम्भवतः जीवित नहीं बच पाएँगे। प्रभु यीशु जानते थे कि लोगों का विश्वास इतना कम था, कि वे प्रभु को नहीं जानते थे, और कि उनके क्रूस पर चढ़ाये जाने के कारण और भी अधिक लोग कमज़ोर और निराश हो जाएँगे। इसीलिए प्रभु यीशु ने मृतकों में से लौट आने के पश्चात, अपने शिष्यों के साथ सम्पर्क किया, उनसे बात की, उन्होंने पवित्रशास्त्र को समझाया और उनके साथ संगति की, उनके साथ भोजन किया और थोमा को उनके हाथ और पसली को छूने की अनुमति दी, इत्यादि। प्रभु यीशु के बोले गए वचनों से और उनके पुनरुत्थान के पश्चात किए गए कामों से उनके शिष्यों ने स्वीकार कर लिया कि यीशु वास्तव में पुनरुत्थित हो चुके हैं और उन्होंने जान लिया कि यह वही प्रभु थे, जिन्होंने पहले उनके साथ भोजन किया था, जो उनके साथ रहे थे और जिन्होंने पहले उनके साथ अपना जीवन साझा किया था, और यह वही प्रभु थे जिन्होंने उन्हें उपदेश दिया था उनकी आवश्यकताओं को पूरा किया था, उनका मार्गदर्शन किया था, जिन्होंने उनसे वैसे ही प्रेम किया, जैसा वह पहले करते थे, और वह उनकी परवाह करते थे और उन्हें छोड़ा नहीं थे और वह ठीक वहीं उनके साथ थे। प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर का देहधारण थे, सदा-सर्वदा रहने वाले, मनुष्य की अनन्त सहायता, मनुष्य का मज़बूत किला और आश्रयस्थल। यद्यपि प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया गया था, वह मृत्योपरांत जीवन की कुंजियाँ के रक्षक थे और उनमें फिर जी उठने की सामर्थ थी, क्योंकि वह अनुपम परमेश्वर स्वयं थे। उसके पश्चात लोग और भटके हुए या हक्के-बक्के नहीं रह गये थे और वे प्रभु यीशु पर और सन्देह नहीं करते थे, परन्तु इसके स्थान पर वे अपने हृदयों की गहराई से यीशु पर विश्वास करने और उनपर भरोसा करने के योग्य हो गए थे। मृतकों में से लौट आने के बाद, प्रभु यीशु का उनके शिष्यों को दिखाई देने और उनके साथ बातचीत करने का पूर्ण रूप से यही परिणाम था।

प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के पश्चात उनके मनुष्य को दिखाई देने के इन दोनों अर्थों से मैंने अंततः समझ लिया कि जिस रीति से वह उन्हें दिखाई दिए थे उससे उन्होंने लोगों के दिलों को जगा दिया था और उन्होंने हमें हमारे लिए परमेश्वर की परवाह और प्रेम का अनुभव करने के योग्य भी किया था। इस प्रकार की देखभाल और प्रेम किसी प्रकार की दन्तकथा नहीं है-वे तो तथ्य हैं। इससे हम यह भी समझ सकते हैं कि परमेश्वर हमें अपना परिजन मानते हैं; वह सर्वदा हमारे साथ रहे हैं और हमें कभी नहीं छोड़ा है, क्योंकि परमेश्वर ने हमें पा लेने के लिए सृजा था। वह आशा करते हैं कि हम उनके वचनों को सुनेंगे और पूरी तरह से उनकी आराधना करेंगे हम उनके साथ एक मन हो जाएँगे। इसलिए, चाहे यीशु देह में अपने वचन बोल रहे थे या अपने कार्य कर रहे थे या अपने पुनरुत्थान के पश्चात वह आत्मा में मनुष्य को दिखाई दे रहे थे, उन्होंने सर्वदा मनुष्यजाति की परवाह की और वह विशेष रूप से उन लोगों के लिए चिन्तित थे, जो उनके अनुयायी थे। ऐसा इसलिए थे क्योंकि मनुष्य में पाप पर जय प्राप्त करने की योग्यता नहीं है और परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना और सत्य की उपलब्धता के बिना मनुष्य के पास अपनी भ्रष्टता को उतार फेंकने और परमेश्वर के वास्तविक उद्धार को प्राप्त करने का कोई तरीका नहीं है। अपनी गलत धारणाओं में हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर नेछुटकारे के कार्य को समाप्त कर देने के पश्चात हमें छोड़ दिया और उसके बाद परमेश्वर ने हम पर कोई ध्यान नहीं दिया। परन्तु सच्चाई वह नहीं है जैसा हम सोचते हैं। प्रभु यीशु ने मनुष्यजाति को छुड़ाने के लिए अपने कार्य को पूरा किया, परन्तु उन्होंने मनुष्य को छोड़ा नहीं। वह अभी भी मनुष्य के साथ हैं, ठीक जैसे वह पहले थे, हमारी देखभाल करते हुए, हमारी ज़रूरतों को पूरा करते हुए और हमारा मार्गदर्शन करते हुए; ज़रूरत के समय में प्रभु यीशु हमारी सहायता और हमारा सहारा हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह हमें कैसे दिखाई देते हैं, वह सर्वदा हमारे साथ हैं! यह ठीक ऐसा ही है जैसा परमेश्वर के वचन कहते हैं, "यद्यपि प्रभु यीशु पुनरूत्थित हो चुका था, फिर भी उसके हृदय और उसके कार्य ने मनुष्यजाति को नहीं छोड़ा था। उसने अपने प्रकटन से लोगों को बताया कि वह भले ही किसी भी रूप में अस्तित्व में क्यों न हो, वह हर समय और हर जगह लोगों का साथ देगा, उनके साथ चलेगा, और उनके साथ रहेगा। और वह हर समय और हर जगह, वह मनुष्यजाति का भरण पोषण करेगा और उनकी चरवाही करेगा, उन्हें उसे देखने और छूने देगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि वे कभी पुनः असहाय महसूस न करें। प्रभु यीशु यह भी चाहता था कि लोग यह जानें: इस संसार में उनके जीवन अकेले नहीं हैं। मनुष्यजाति के पास परमेश्वर की देखरेख है, परमेश्वर उनके साथ है; लोग हमेशा परमेश्वर पर आश्रित हो सकते हैं; वह अपने प्रत्येक अनुयायी का परिवार है। परमेश्वर पर आश्रित होने के साथ, मनुष्यजाति अब और एकाकी या असहाय नहीं होगी, और जो उसे अपनी पापबलि के रूप में स्वीकार करते हैं वे अब और पाप में बँधे नहीं रहेंगे" ("परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III")।

वास्तव में हम में से प्रत्येक, जो प्रभु यीशु पर विश्वास करता है यह देख सकता है कि परमेश्वर पर विश्वास के मार्ग पर, जब कभी भी हम धन, प्रसिद्धि या ऐश्वर्य जैसी परीक्षाओं का सामना करते हैं, तो प्रभु हमारी रक्षा करते हैं और हमें उन्हें दूर करने और उन पर जय प्राप्त करने के योग्य बनाते हैं; जब कभी भी हम रुकावटों और असफलताओं का समाना करते हैं, तो प्रभु अपने वचनों के द्वारा हमारा मार्गदर्शन करते हैं, वह हमें विश्वास और सामर्थ प्रदान करते हैं, हमें मज़बूत बनाते हैं; जब हम अपने जीवनों में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो ज़रूरत में प्रभु सर्वदा हमारी सहायता करते हैं, हमारे लिए बाहर निकलने के द्वारा खोलते हैं; जब परीक्षाएँ हम पर आ पड़ती हैं और हम पीड़ा का अनुभव करते हैं, तो प्रभु के वचनहमें उचित रीति से रोशन करते और हमारा मार्गदर्शन करते हैं, हमें परमेश्वर की इच्छा समझने और अपनी आत्माओं में शान्ति और आनन्द अनुभव करने के योग्य करते हैं… हम वास्तव में अनुभव कर सकते हैं कि परमेश्वर हमारे साथ हैं, वह हर दिन हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं, हमारे साथ चल रहे हैं और हमें सत्य को समझने और उनकी इच्छा को समझने के योग्य बना रहे हैं…

मैं प्रभु के प्रेम से बहुत ही प्रेरित हूँ और अब मैं अच्छे से समझता हूँ कि प्रभु यीशु अपने पुनरुत्थान के पश्चात 40 दिनों तक मनुष्यों को क्यों दिखाई दिए, अपने शिष्यों की उपस्थिति में भोजन किया, वचन को समझाया और उनके साथ बात की, उन्हें अनेक ज़िम्मेदारियाँ प्रदान कीं, इत्यादि। हर एक बात जो प्रभु यीशु ने कही या की वह प्रचुर परवाह और विचारों से भरी हुई थी और उनके सभी वचन असाधारण रूप से अर्थपूर्ण थे। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के द्वारा मुझ अब यीशु का अपने पुनरुत्थान के पश्चात मनुष्यों को दिखाई देने के विषय में गहरी समझ प्राप्त हो गई है। परमेश्वर का धन्यवाद!

स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया

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