क्या मायने हैं विश्वास के?
जब देख न सके, छू न सके इंसान
जब इंसानी धारणाओं के अनुरूप न हो
परमेश्वर का काम,
जब होता ये पहुँच से बाहर,
तब इंसान में सच्ची आस्था होनी चाहिये
तब इंसान का दिल सच्चा होना चाहिये।
इसी विश्वास की बात करता है परमेश्वर।
Ⅰ
शुद्धिकरण और मुश्किलों में
पड़ती है ज़रूरत विश्वास की,
और आता है शुद्धिकरण विश्वास के साथ।
जुदा ना हो सकते ये एक दूजे से
Ⅱ
चाहे जैसा परिवेश हो तुम्हारा,
या चाहे जैसे कार्य करे तुम में परमेश्वर,
सत्य और जीवन को खोजने का प्रयास करो,
अपने अंदर परमेश्वर का कार्य कराओ।
Ⅲ
परमेश्वर के कर्मों को समझने का प्रयास करो,
सत्य के अनुसार कार्य करो।
दिखता है इससे सच्चा विश्वास तुम्हारा,
और खोते नहीं उम्मीद तुम परमेश्वर में।
हर समय जीवन का अनुसरण करो
और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करो,
है यही सच्चा विश्वास,
है यही सच्चा-सुंदर प्रेम।
Ⅳ
जब हो शुद्धिकरण तुम्हारा,
तो परमेश्वर पर शक न करो,
फिर भी सत्य का अनुसरण करो
परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने का प्रयास करो।
Ⅴ
कुछ भी करे परमेश्वर चाहे,
उसकी ख़ुशी के लिये सत्य का अभ्यास करो,
उसकी इच्छा को खोजो, विचार करो,
इसके मायने हैं सच्चा विश्वास है उसमें तुम्हें।
हर समय जीवन का अनुसरण करो
और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करो,
है यही सच्चा विश्वास,
है यही सच्चा-सुंदर प्रेम।
तुम राज करोगे राजा की तरह, कहा जब परमेश्वर ने,
तब प्रेम किया तुमने परमेश्वर से।
जब दर्शन दिये तुम्हें परमेश्वर ने,
तब अनुसरण किया तुमने परमेश्वर का,
अब जबकि है छुपा हुआ परमेश्वर,
जब देख नहीं सकते तुम परमेश्वर को,
और जब आ गई है मुसीबत तो,
क्या खोते हो तुम अपना विश्वास परमेश्वर में?
हर समय जीवन का अनुसरण करो
और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करो,
है यही सच्चा विश्वास,
है यही सच्चा-सुंदर प्रेम।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
विश्वास क्या है--परमेश्वर से अनुमोदित विश्वास--ईसाई अनिवार्यताएं